Saturday 15 November 2014

शानी  एक ऐसे कथा लेखक है जो अपनी समसामयिक विषय की पृष्ठभूमि को अपने लेखन से प्रभावित करते  रहे  हैं।  उन्होंने समकालीन शैलीगत प्रभाव को पूर्णरूपेण प्रयोग करते हुए अपने उपन्यास में नयी शैलीगत मान्यताओं को प्रक्षेपित किया है।  जो अपने आप में शैली की दृष्टि से विशिष्ट हैं।  शानी अपने अनुभूतियों और विचारों को अभिव्यक्ति देने के लिए अच्छी शैली का प्रयोग किया है।  इनके उपन्यास साहित्य के पात्र जितना कुछ बोलते है उससे कहीं  अधिक अपने भीतर की पीड़ा और वेदना को अभिव्यक्त  भी करते हैं। शानी के उपन्यास साहित्य के शैली तत्व इनकी लेखनी का स्पर्श पाकर पाठकों को अभिभूत करते हैं। इनके उपन्यास पाठकों के ह्दय तथा बुद्धि को समान रूप से आविष्ट  करने की क्षमता रखते हैं।  इनकी शैली का क्षेत्र अत्यन्त व्यापक एवं विस्तृत है। विषय विस्तार की जहाँ आवश्यकता होती है वहाँ लेखन अपनी बात स्पष्ट रूप से कह देते है।  इसी प्रकार नारी पात्र सल्लो आपा जो कि किसी नवयुवक से प्रेम करती है किन्तु वह अपने परिवार के डर के कारण कुछ कह नहीं पाती है और जब उसके घर वालों को पता चलता है कि वह अविवाहित ही गर्भवती हो गई है तो उसे जहर  देकर मार दिता  जाता है।
शानी ने  परिवेश के अनुकूल ही भाषा शैली को अपनाया है। जैसा परिवेश एवं माहौल  होता है उसी प्रकार अभिव्यक्ति की शैली निर्मित हो जाती है। यह रचनाकार की सम्भावनाशीलता को दिखती है। रचनाकार पर हिन्दुस्तानी और उर्दू दोनों भाषाओं का प्रभाव दिखायी डेट है। इसलिए ठेठ हिन्दुस्तानी शैली का प्रयोग भी उनके उपन्यास में दिखायी देता है। कथात्मक शैली का भी प्रयोग शानी के उपन्यास में देखने को मिलती है। कथात्मक शैली से तात्पर्य  उपन्यास के बीच में कही जाने वाली लघु कथाओं से युक्त शैली से है जो कि उपन्यास में कही जाने वाली बातों की वास्तविकता सिद्ध करती है। लघु कथाएँ उपन्यास को यथार्थता से जोड़ती है। साथ ही साथ वर्तमान समय में जिस बातों को नकार दिया जाता है , तब लोक प्रचलित लघुकथाएँ उनकी सार्थकता सिद्ध करती है।
कथात्मक शैली का प्रयोग उपन्यास में ज्यादातर के माध्यम से किया गया है। बीच -बीच में नैरेटर का कार्य करता है-
''लेकिन उसके बाद अचानक सुनारिन की आवाज बन्द हो गई थी जैसे किसी ने कसकर मुँह ही मूँद लिया हो। फिर एकाएक दबा हुआ स्वर बड़ी जोर से चीरता हुआ मुहल्ले -भर में गूँज गया था ,'' माँ गोओ  ओ  ओ ! माँ गो   ओ ओ !''
शानी कृत उपन्यास ''काला जल '' में संवादात्मक शैली भी देखने को मिलती है। इसे वार्तालाप या कथोपकथन कहा जाता है। नाटकों में जितना संवादों का महत्वपूर्ण स्थान होता है। उतना ही महत्व उपन्यास में भी है कथा को आगे बढ़ाने के लिए तथा पात्रों के गतिविधियों को स्पष्ट करने  में संवाद महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
निष्कर्षतः कह सकते है कि शानी के उपन्यास साहित्य की शैली में विविधता देखने को मिलती है जो कि इनके साहित्य में कलात्मक एवं रोचकता की वृद्धि करता है। लेखक के शैली का सौंदर्य भाषा एवं भाषागत या भाषा इकाइयों का सुव्यवस्थित से विषयनुकूल चयन है।  इनके उपन्यास में नवीन शैलीगत

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